इसके वास्ते अपनी जान तक लुटा देंगे हम हमसे टकराए तो उसकी हस्ती मिटा देंगे हम सर हिमालय का हम न झुकने देंगे कभी ...
मिट कर भी दिल में है वतन की उल्फत मौत भी हमसे पहले हमारी रजा मांगती है इसके रखवाले हम जैसे शेर-ए-जिगर हैं
जो सीने में जली है बुझने वाली नहीं है आग दुश्मनों के लिए है रुकने वाली नहीं है